22 April 2023 04:10 PM
जोग संजोग टाइम्स,
आज बीकानेर दिवस है। आज हमारे बीकानेर में जगह-जगह योग करती मूर्तियां नजर आती है। रेलवे स्टेशन पर तो इन मूर्तियों के जरिए पूरा गांव बसा दिया गया है। ये किया है बीकानेर की ही एक युवती ने। जो दिन रात मूर्तियां बना रही है। अपने इस शौक को प्रोफेशन में बदल दिया है। जो अब तक एक करोड़ रुपए कमा चुकी हैं।
ये हैं बीकानेर की रुचिका जोशी। वो फैशन डिजाइन का कोर्स करने के लिए चंडीगढ़ गई थीं। वहां से मूर्तिकार बनकर लौटी। रुचिका ने बताया- फैशन डिजाइन कोर्स के दौरान ही चंडीगढ़ के एक कॉलेज में मूर्तिकला को देखा। मन ऐसा भाया कि फैशन डिजाइन की पढ़ाई छोड़कर मूर्ति बनाने लगी। आज बीकानेर में जगह-जगह रुचिका की बनाई मूर्तियां लोगों को आकर्षित कर रही हैं।
सबसे आकर्षक गणगौर
बीकानेर रेलवे स्टेशन के पिछले गेट यानी प्लेटफॉर्म नंबर छह के वेटिंग एरिया को आकर्षक बनाने के लिए रुचिका की सबसे बड़ी भूमिका है। रुचिका ने यहां दीवार पर रिलाइफ आर्ट पर काम शुरू किया। एक दीवार पर जूनागढ़ और उसके आगे से निकलती गणगौर को आकार दिया तो हर कोई निहारता रहा। कलर होने के बाद जब इसे सार्वजनिक किया गया। स्टेशन के इस हिस्से की रंगत ही बदल गई। आज स्टेशन पर आने वाला हर शख्स यहां 'सेल्फी' लेता ही है। इससे पहले साल 2019 में इसी रुचिका ने रेलवे स्टेशन के मुख्य द्वार पर 'वॉक ऑफ हेरिटेज' तैयार किया। इसमें ऊंट गाड़ा, उसके साथ चलते ग्रामीण दिखाए थे।
नया बिजनेस मॉडल
दरअसल, रुचिका ने मूर्ति बनाने के शौक को बिजनेस मॉडल में तब्दील कर लिया। वो अब तक बीकानेर नगर विकास न्यास, नगर निगम, प्रशासन और रेलवे के माध्यम से करीब एक करोड़ रुपए का बिजनेस कर चुकी है। वो बताती है कि सिर्फ प्रशासनिक ही नहीं बल्कि प्राइवेट लेवल पर भी ये काम होता है। लोग अपने घरों के लिए, ऑफिस के लिए इंटीरियर डेकोरेशन में इसका उपयोग कर रहे हैं। इसके अलावा पार्क बनाने के लिए इस कला का उपयोग होता है। हाल ही में रुचिका डायनासोर, गौरिल्ला, गाय, शेर, चीता आदि भी बना रही है। शौक में शुरू हुए इस काम के लिए अब रुचिका ने वैष्णो धाम के पास अपना स्टूडियो बना लिया है। जहां एक मैनेजर सहित लेबर भी काम करता है। हाल ही में रुचिका ने मेजर पूर्णसिंह सर्किल के पास ही दो बच्चों की मूर्ति लगाई है, इसमें एक लड़की हाथ में चरखी लिए खड़ी है। एक लड़का पतंग उड़ा रहा है। इसी परिसर में कुछ पतंगे भी आसमान में उड़ती दिखाई गई है। रुचिका का कहना है कि मैं भी बचपन में अपने भाई के साथ ऐसे ही खड़ी होती थी।
फैशन डिजाइन बीच में छोड़ी
रुचिका बताती है कि वो चंडीगढ़ में फैशन डिजाइन का कोर्स करने गई थी। फैशन डिजाइन एक महंगा काम है, जहां एक डिजाइन पर हजारों रुपए खर्च हो जाते हैं। दो से तीन हजार रुपए मीटर कपड़ा आता है। एक दिन चंडीगढ़ में ही आर्ट कॉलेज में मूर्तियों को आकार देते स्टूडेंट्स को देखा। तब मन हुआ कि इस पर काम किया जाए। अब महंगे कपड़ों के बजाय सामान्य मिट्टी से मूर्तियां बना रही हूं।
ऐसे तैयार होती है मूर्ति
रुचिका बताती है कि किसी भी मूर्ति को बनाने के लिए पहले एक स्ट्रक्चर तैयार किया जाता है। लोहे से बनने वाले इस स्ट्रक्चर पर मिट्टी से मूर्ति को आकार दिया जाता है। एक-एक डिजाइन तैयार करने में कई दिन लग जाते हैं। मिट्टी का काम पूरा होने पर उस पर फाइबर, लोहा या अन्य कास्ट किया जाता है। लोहे की मूर्ति महंगी पड़ती है। ऐसे में फाइबर ही ज्यादा काम आता है। इसी पर बाद में मूर्ति की जरूरत के हिसाब से कलर किया जाता है।
द्रोपदी मूर्मू की मूर्ति बनाई, दे न सकी
पिछले दिनों जब राष्ट्रपति द्रोपदी मूर्मू बीकानेर आई तो रुचिका ने उनकी एक मूर्ति तैयार की। हुबहूं बनी ये मूर्ति रुचिका राष्ट्रपति को भेंट करना चाहती थी लेकिन वो उन तक पहुंच ही नहीं सकी। आज भी वो इस छोटी मूर्ति को राष्ट्रपति भवन तक पहुंचाना चाहती है। इसके अलावा अर्जुनराम मेघवाल, डॉ. बी.डी. कल्ला सहित कई लोगों की मूर्ति बनाई है।
अकेली महिला मूर्तिकार है रुचिका
पश्चिमी राजस्थान में रुचिका अकेली महिला मूर्तिकार है। वो मूल रूप से श्रीगंगानगर की है लेकिन पिछले लंबे समय से बीकानेर में है। वो बताती है कि बीकानेर ही नहीं बल्कि पश्चिमी राजस्थान में ही वो अकेली महिला है जो ये काम करती है। कई दिक्कत भी आती है लेकिन स्टॉफ के साथ मिलकर हर समस्या दूर कर लेती है। वो मानती है कि महिलाओं के लिए इस फिल्ड में काफी संभावनाएं हैं।
जोग संजोग टाइम्स,
आज बीकानेर दिवस है। आज हमारे बीकानेर में जगह-जगह योग करती मूर्तियां नजर आती है। रेलवे स्टेशन पर तो इन मूर्तियों के जरिए पूरा गांव बसा दिया गया है। ये किया है बीकानेर की ही एक युवती ने। जो दिन रात मूर्तियां बना रही है। अपने इस शौक को प्रोफेशन में बदल दिया है। जो अब तक एक करोड़ रुपए कमा चुकी हैं।
ये हैं बीकानेर की रुचिका जोशी। वो फैशन डिजाइन का कोर्स करने के लिए चंडीगढ़ गई थीं। वहां से मूर्तिकार बनकर लौटी। रुचिका ने बताया- फैशन डिजाइन कोर्स के दौरान ही चंडीगढ़ के एक कॉलेज में मूर्तिकला को देखा। मन ऐसा भाया कि फैशन डिजाइन की पढ़ाई छोड़कर मूर्ति बनाने लगी। आज बीकानेर में जगह-जगह रुचिका की बनाई मूर्तियां लोगों को आकर्षित कर रही हैं।
सबसे आकर्षक गणगौर
बीकानेर रेलवे स्टेशन के पिछले गेट यानी प्लेटफॉर्म नंबर छह के वेटिंग एरिया को आकर्षक बनाने के लिए रुचिका की सबसे बड़ी भूमिका है। रुचिका ने यहां दीवार पर रिलाइफ आर्ट पर काम शुरू किया। एक दीवार पर जूनागढ़ और उसके आगे से निकलती गणगौर को आकार दिया तो हर कोई निहारता रहा। कलर होने के बाद जब इसे सार्वजनिक किया गया। स्टेशन के इस हिस्से की रंगत ही बदल गई। आज स्टेशन पर आने वाला हर शख्स यहां 'सेल्फी' लेता ही है। इससे पहले साल 2019 में इसी रुचिका ने रेलवे स्टेशन के मुख्य द्वार पर 'वॉक ऑफ हेरिटेज' तैयार किया। इसमें ऊंट गाड़ा, उसके साथ चलते ग्रामीण दिखाए थे।
नया बिजनेस मॉडल
दरअसल, रुचिका ने मूर्ति बनाने के शौक को बिजनेस मॉडल में तब्दील कर लिया। वो अब तक बीकानेर नगर विकास न्यास, नगर निगम, प्रशासन और रेलवे के माध्यम से करीब एक करोड़ रुपए का बिजनेस कर चुकी है। वो बताती है कि सिर्फ प्रशासनिक ही नहीं बल्कि प्राइवेट लेवल पर भी ये काम होता है। लोग अपने घरों के लिए, ऑफिस के लिए इंटीरियर डेकोरेशन में इसका उपयोग कर रहे हैं। इसके अलावा पार्क बनाने के लिए इस कला का उपयोग होता है। हाल ही में रुचिका डायनासोर, गौरिल्ला, गाय, शेर, चीता आदि भी बना रही है। शौक में शुरू हुए इस काम के लिए अब रुचिका ने वैष्णो धाम के पास अपना स्टूडियो बना लिया है। जहां एक मैनेजर सहित लेबर भी काम करता है। हाल ही में रुचिका ने मेजर पूर्णसिंह सर्किल के पास ही दो बच्चों की मूर्ति लगाई है, इसमें एक लड़की हाथ में चरखी लिए खड़ी है। एक लड़का पतंग उड़ा रहा है। इसी परिसर में कुछ पतंगे भी आसमान में उड़ती दिखाई गई है। रुचिका का कहना है कि मैं भी बचपन में अपने भाई के साथ ऐसे ही खड़ी होती थी।
फैशन डिजाइन बीच में छोड़ी
रुचिका बताती है कि वो चंडीगढ़ में फैशन डिजाइन का कोर्स करने गई थी। फैशन डिजाइन एक महंगा काम है, जहां एक डिजाइन पर हजारों रुपए खर्च हो जाते हैं। दो से तीन हजार रुपए मीटर कपड़ा आता है। एक दिन चंडीगढ़ में ही आर्ट कॉलेज में मूर्तियों को आकार देते स्टूडेंट्स को देखा। तब मन हुआ कि इस पर काम किया जाए। अब महंगे कपड़ों के बजाय सामान्य मिट्टी से मूर्तियां बना रही हूं।
ऐसे तैयार होती है मूर्ति
रुचिका बताती है कि किसी भी मूर्ति को बनाने के लिए पहले एक स्ट्रक्चर तैयार किया जाता है। लोहे से बनने वाले इस स्ट्रक्चर पर मिट्टी से मूर्ति को आकार दिया जाता है। एक-एक डिजाइन तैयार करने में कई दिन लग जाते हैं। मिट्टी का काम पूरा होने पर उस पर फाइबर, लोहा या अन्य कास्ट किया जाता है। लोहे की मूर्ति महंगी पड़ती है। ऐसे में फाइबर ही ज्यादा काम आता है। इसी पर बाद में मूर्ति की जरूरत के हिसाब से कलर किया जाता है।
द्रोपदी मूर्मू की मूर्ति बनाई, दे न सकी
पिछले दिनों जब राष्ट्रपति द्रोपदी मूर्मू बीकानेर आई तो रुचिका ने उनकी एक मूर्ति तैयार की। हुबहूं बनी ये मूर्ति रुचिका राष्ट्रपति को भेंट करना चाहती थी लेकिन वो उन तक पहुंच ही नहीं सकी। आज भी वो इस छोटी मूर्ति को राष्ट्रपति भवन तक पहुंचाना चाहती है। इसके अलावा अर्जुनराम मेघवाल, डॉ. बी.डी. कल्ला सहित कई लोगों की मूर्ति बनाई है।
अकेली महिला मूर्तिकार है रुचिका
पश्चिमी राजस्थान में रुचिका अकेली महिला मूर्तिकार है। वो मूल रूप से श्रीगंगानगर की है लेकिन पिछले लंबे समय से बीकानेर में है। वो बताती है कि बीकानेर ही नहीं बल्कि पश्चिमी राजस्थान में ही वो अकेली महिला है जो ये काम करती है। कई दिक्कत भी आती है लेकिन स्टॉफ के साथ मिलकर हर समस्या दूर कर लेती है। वो मानती है कि महिलाओं के लिए इस फिल्ड में काफी संभावनाएं हैं।
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