16 January 2023 02:41 PM
जोग संजोग टाइम्स बीकानेर ,
9 जनवरी 2023 को सिख सैनिकों के लिए रक्षा मंत्रालय ने इमरजेंसी सामान के तौर पर 12,730 ‘बैलिस्टिक हेलमेट’ खरीदने का ऑर्डर दिया है। ये स्पेशल हेलमेट एमकेयू कंपनी ने सिख सैनिकों के लिए बनाया है। सरकार के इस फैसले के बाद सिखों के सबसे बड़े संगठन में से एक सिख गुरुद्वारा प्रबंधन समिति यानी SGPC ने इसका कड़ा विरोध किया है। इसके साथ ही 100 साल बाद एक बार फिर से सेना में पगड़ी-हेलमेट विवाद छिड़ गया है।
सिख हेलमेट पहनने का क्यों विरोध कर रहे हैं, सिखों के लिए पगड़ी का क्या महत्व है?
सबसे पहले जानते हैं पूरा मामला क्या है?
रिपोर्ट के मुताबिक रक्षा मंत्रालय फास्ट ट्रैक मोड में सिख सैनिकों के लिए 12,730 ‘बैलिस्टिक हेलमेट’ खरीदने की योजना बना रहा है। मंत्रालय ने सिखों के लिए विशेष डिजाइन के इस हेलमेट के लिए टेंडर भी जारी कर दिया है। इनमें 8911 लार्ज साइज और 3819 एक्स्ट्रा लार्ज साइज के हेलमेट हैं। ये खबर सामने आते ही सिख गुरुद्वारा प्रबंधन समिति यानी SGPC सरकार के इस फैसले के विरोध में खड़ा हो गया है। सिख सैनिकों के लिए बना पहला कंफर्टेबल हेलमेट ‘वीर’
इस हेलमेट को बनाने वाली कंपनी एमकेयू का कहना है कि हेलमेट सिखों के धार्मिक मान्यता को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इसे सिख सैनिक अपने पगड़ी के ऊन पर आसानी से पहन सकते हैं।
इससे पहले सिख सैनिकों के पहनने के लिए अब तक कोई भी कंफर्टेबल हेलमेट नहीं था। इसे पहनकर जवान जंग भी लड़ सकते हैं। यह एंटी फंगल, एंटी एलर्जिक और बुलेट प्रूफ है।
इसके अलावा वीर में मल्टी एक्सेसरी कनेक्टर सिस्टम यानी MACS लगा है। इससे इमरजेंसी में जवान की लोकेशन आसानी ट्रेस हो जाएगी । ये हेलमेट हेड-माउंटेड सेंसर, कैमरा, टॉर्च, कम्युनिकेशन डिवाइस और नाइट विजन डिवाइस से लैस है।
सिखों के लिए पगड़ी सिर्फ कपड़ा नहीं सिर का ताज है
सिखों के सबसे पवित्र स्थल अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने हेलमेट के फैसले को 'सिख पहचान पर हमला' करार दिया है। उन्होंने केंद्र सरकार और सेना से इस फैसले को तुरंत वापस लेने की अपील की है। उन्होंने कहा कि पगड़ी को हेलमेट से बदलने की कोशिश 'सिख पहचान को दबाने की कोशिश' के रूप में देखा जाएगा।
जत्थेदार ने कहा कि सिख के सिर पर बंधी दस्तार कोई 5 या 7 मीटर का कपड़ा नहीं है, यह हमारी पहचान और सिर का ताज है।
एसजीपीसी के महासचिव हरजीत ग्रेवाल ने कहा है कि सिखों को हेलमेट मुहैया करवाने से उनकी अलग पहचान समाप्त हो जाएगी। उन्होंने कहा कि इससे पहले भी द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भी सिख सैनिकों ने हेलमेट पहनने से इनकार कर दिया था, इसलिए इस मुद्दे पर केंद्र को दोबारा विचार करना चाहिए।
पहले विश्वयुद्ध में ही हेलमेट पहनने से इनकार कर दिया था
सिख समुदाय के लिए हेलमेट के इस्तेमाल पर बहस कोई नई बात नहीं है। अक्टूबर 1914 में ब्रिटेन की ओर से 15 लुधियाना सिख प्लाटून जर्मनी के खिलाफ लड़ने के लिए अग्रिम मोर्चे पर पहुंची थी। इस दौरान ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें हेलमेट पहनने का आदेश दिया। यह पहला मौका था, जब सिख सैनिकों ने हेलमेट पहनने से इनकार कर दिया था।
ब्रिटिश अफसरों के अलावा पंजाब के सिंह सभाओं के केंद्रीय संगठन चीफ खालसा दीवान ने भी उस दौरान सिख सैनिकों से हेलमेट पहनने की सिफारिश की थी। हालांकि, सिख सैनिकों ने यह बात नहीं मानी और सिर्फ पगड़ी पहनकर ही जंग लड़ी।
ब्रिगेडियर इंद्रजीत सिंह गठल बताते हैं कि ऐसी कुछ और घटनाएं भी हुई थीं। हालांकि तब तक ब्रिटिश सेना ने यह आदेश पारित कर दिया था कि सिख सैनिकों को हेलमेट पहनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
इसके बावजूद अंग्रेज लगातार सिख सैनिकों पर हेलमेट पहनने का दबाव बना रहे थे। अंग्रेज इस मुद्दे पर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के नेतृत्व को भी मनाने में कामयाब हो गए थे। बावजूद इसके सिख सैनिकों ने हेलमेट नहीं पहना। इसके बाद दूसरा विश्व युद्ध (1939-1945) पगड़ी में ही लड़ा। यानी एक बार फिर हेलमेट नहीं पहना।
महारानी ने दोपहिया वाहन चलाते समय हेलमेट पहनने से छूट दी
पगड़ी को लेकर सिख सैनिकों की प्रतिबद्धता को देखते हुए ब्रिटेन में दोपहिया वाहन चलाते समय सिख समुदाय के लोगों को हेलमेट पहनने से छूट मिली हुई है।
नवंबर 1976 में ब्रिटिश महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने पगड़ीधारी सिख समुदाय को दोपहिया वाहन चलाते समय हेलमेट पहनने से छूट देने के लिए एक विधेयक को अपनी शाही स्वीकृति प्रदान की थी।
हालांकि, इस बिल पर लंबी डिबेट चली थी। इस दौरान सुरक्षा, विश्व युद्ध में सिख सैनिकों के वीरतापूर्ण कार्यों, सिखों के लिए रोजगार के अवसरों पर हेलमेट के प्रभाव और ब्रिटिश समाज में सहिष्णुता समेत कई पहलुओं पर बात हुई थी।
इस बिल को पास कराने में ब्रिटिश सिख सांसद सिडनी सिंह बिडवेल ने मुख्य भूमिका निभाई थी। ब्रिटिश सांसद अर्ल ग्रे ने इस बहस में भाग लेते हुए कहा था कि जब दूसरे विश्व युद्ध की घोषणा हुई थी, तब एक सैन्य आदेश जारी हुआ था।
इस आदेश में कहा गया था कि भारतीय सेना के सभी सैनिकों को स्टील का हेलमेट पहनना होगा। इस पर सिख सैनिकों ने कहा कि उन्हें हेलमेट पहनने के लिए मजबूर किया गया तो वे युद्ध में भाग नहीं लेंगे। इसके बाद यह आदेश वापस ले लिया गया।
अर्ल ग्रे ने बताया कि युद्ध में सिखों की प्रशंसा करने वाले कमांडिंग अफसरों के कई पत्र हैं। उन्होंने बताया कि सिख जो पगड़ी पहनते हैं उसमें कई परत होती है जो उन्हें प्रभावी सुरक्षा प्रदान करती है।
दूसरे विश्व युद्ध में पंजाब रेजीमेंट की कमान संभालने वाले कर्नल ह्यूजेस ऐसे ही एक पत्र में लिखते हैं कि सिख सैनिकों ने युद्ध में पगड़ी पहन रखी थी। हालांकि इसके बावजूद स्टील के हेलमेट पहनने वाली किसी भी अन्य बटालियन की तुलना में उनके सिर में कम चोटें लगीं।
अमेरिका के मरीन कॉर्प्स में भी पगड़ी पहनने की छूट
अमेरिका की एक कोर्ट ने दिसंबर 2022 में कहा था कि पगड़ी पहनने और दाढ़ी रखने की वजह से सिखों को मरीन कॉर्प्स में भर्ती होने से नहीं रोका जा सकता। कोर्ट ने 3 सिख युवकों की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही थी। दरअसल, मरीन कॉर्प्स में जवानों को दाढ़ी करने की अनुमति नहीं होती है। यूएस की कोर्ट ऑफ अपील ने बाल काटने और दाढ़ी मुंडवाने के नियम को धार्मिक स्वतंत्रता बहाली अधिनियम का उल्लंघन बताया।
जोग संजोग टाइम्स बीकानेर ,
9 जनवरी 2023 को सिख सैनिकों के लिए रक्षा मंत्रालय ने इमरजेंसी सामान के तौर पर 12,730 ‘बैलिस्टिक हेलमेट’ खरीदने का ऑर्डर दिया है। ये स्पेशल हेलमेट एमकेयू कंपनी ने सिख सैनिकों के लिए बनाया है। सरकार के इस फैसले के बाद सिखों के सबसे बड़े संगठन में से एक सिख गुरुद्वारा प्रबंधन समिति यानी SGPC ने इसका कड़ा विरोध किया है। इसके साथ ही 100 साल बाद एक बार फिर से सेना में पगड़ी-हेलमेट विवाद छिड़ गया है।
सिख हेलमेट पहनने का क्यों विरोध कर रहे हैं, सिखों के लिए पगड़ी का क्या महत्व है?
सबसे पहले जानते हैं पूरा मामला क्या है?
रिपोर्ट के मुताबिक रक्षा मंत्रालय फास्ट ट्रैक मोड में सिख सैनिकों के लिए 12,730 ‘बैलिस्टिक हेलमेट’ खरीदने की योजना बना रहा है। मंत्रालय ने सिखों के लिए विशेष डिजाइन के इस हेलमेट के लिए टेंडर भी जारी कर दिया है। इनमें 8911 लार्ज साइज और 3819 एक्स्ट्रा लार्ज साइज के हेलमेट हैं। ये खबर सामने आते ही सिख गुरुद्वारा प्रबंधन समिति यानी SGPC सरकार के इस फैसले के विरोध में खड़ा हो गया है। सिख सैनिकों के लिए बना पहला कंफर्टेबल हेलमेट ‘वीर’
इस हेलमेट को बनाने वाली कंपनी एमकेयू का कहना है कि हेलमेट सिखों के धार्मिक मान्यता को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इसे सिख सैनिक अपने पगड़ी के ऊन पर आसानी से पहन सकते हैं।
इससे पहले सिख सैनिकों के पहनने के लिए अब तक कोई भी कंफर्टेबल हेलमेट नहीं था। इसे पहनकर जवान जंग भी लड़ सकते हैं। यह एंटी फंगल, एंटी एलर्जिक और बुलेट प्रूफ है।
इसके अलावा वीर में मल्टी एक्सेसरी कनेक्टर सिस्टम यानी MACS लगा है। इससे इमरजेंसी में जवान की लोकेशन आसानी ट्रेस हो जाएगी । ये हेलमेट हेड-माउंटेड सेंसर, कैमरा, टॉर्च, कम्युनिकेशन डिवाइस और नाइट विजन डिवाइस से लैस है।
सिखों के लिए पगड़ी सिर्फ कपड़ा नहीं सिर का ताज है
सिखों के सबसे पवित्र स्थल अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने हेलमेट के फैसले को 'सिख पहचान पर हमला' करार दिया है। उन्होंने केंद्र सरकार और सेना से इस फैसले को तुरंत वापस लेने की अपील की है। उन्होंने कहा कि पगड़ी को हेलमेट से बदलने की कोशिश 'सिख पहचान को दबाने की कोशिश' के रूप में देखा जाएगा।
जत्थेदार ने कहा कि सिख के सिर पर बंधी दस्तार कोई 5 या 7 मीटर का कपड़ा नहीं है, यह हमारी पहचान और सिर का ताज है।
एसजीपीसी के महासचिव हरजीत ग्रेवाल ने कहा है कि सिखों को हेलमेट मुहैया करवाने से उनकी अलग पहचान समाप्त हो जाएगी। उन्होंने कहा कि इससे पहले भी द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भी सिख सैनिकों ने हेलमेट पहनने से इनकार कर दिया था, इसलिए इस मुद्दे पर केंद्र को दोबारा विचार करना चाहिए।
पहले विश्वयुद्ध में ही हेलमेट पहनने से इनकार कर दिया था
सिख समुदाय के लिए हेलमेट के इस्तेमाल पर बहस कोई नई बात नहीं है। अक्टूबर 1914 में ब्रिटेन की ओर से 15 लुधियाना सिख प्लाटून जर्मनी के खिलाफ लड़ने के लिए अग्रिम मोर्चे पर पहुंची थी। इस दौरान ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें हेलमेट पहनने का आदेश दिया। यह पहला मौका था, जब सिख सैनिकों ने हेलमेट पहनने से इनकार कर दिया था।
ब्रिटिश अफसरों के अलावा पंजाब के सिंह सभाओं के केंद्रीय संगठन चीफ खालसा दीवान ने भी उस दौरान सिख सैनिकों से हेलमेट पहनने की सिफारिश की थी। हालांकि, सिख सैनिकों ने यह बात नहीं मानी और सिर्फ पगड़ी पहनकर ही जंग लड़ी।
ब्रिगेडियर इंद्रजीत सिंह गठल बताते हैं कि ऐसी कुछ और घटनाएं भी हुई थीं। हालांकि तब तक ब्रिटिश सेना ने यह आदेश पारित कर दिया था कि सिख सैनिकों को हेलमेट पहनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
इसके बावजूद अंग्रेज लगातार सिख सैनिकों पर हेलमेट पहनने का दबाव बना रहे थे। अंग्रेज इस मुद्दे पर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के नेतृत्व को भी मनाने में कामयाब हो गए थे। बावजूद इसके सिख सैनिकों ने हेलमेट नहीं पहना। इसके बाद दूसरा विश्व युद्ध (1939-1945) पगड़ी में ही लड़ा। यानी एक बार फिर हेलमेट नहीं पहना।
महारानी ने दोपहिया वाहन चलाते समय हेलमेट पहनने से छूट दी
पगड़ी को लेकर सिख सैनिकों की प्रतिबद्धता को देखते हुए ब्रिटेन में दोपहिया वाहन चलाते समय सिख समुदाय के लोगों को हेलमेट पहनने से छूट मिली हुई है।
नवंबर 1976 में ब्रिटिश महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने पगड़ीधारी सिख समुदाय को दोपहिया वाहन चलाते समय हेलमेट पहनने से छूट देने के लिए एक विधेयक को अपनी शाही स्वीकृति प्रदान की थी।
हालांकि, इस बिल पर लंबी डिबेट चली थी। इस दौरान सुरक्षा, विश्व युद्ध में सिख सैनिकों के वीरतापूर्ण कार्यों, सिखों के लिए रोजगार के अवसरों पर हेलमेट के प्रभाव और ब्रिटिश समाज में सहिष्णुता समेत कई पहलुओं पर बात हुई थी।
इस बिल को पास कराने में ब्रिटिश सिख सांसद सिडनी सिंह बिडवेल ने मुख्य भूमिका निभाई थी। ब्रिटिश सांसद अर्ल ग्रे ने इस बहस में भाग लेते हुए कहा था कि जब दूसरे विश्व युद्ध की घोषणा हुई थी, तब एक सैन्य आदेश जारी हुआ था।
इस आदेश में कहा गया था कि भारतीय सेना के सभी सैनिकों को स्टील का हेलमेट पहनना होगा। इस पर सिख सैनिकों ने कहा कि उन्हें हेलमेट पहनने के लिए मजबूर किया गया तो वे युद्ध में भाग नहीं लेंगे। इसके बाद यह आदेश वापस ले लिया गया।
अर्ल ग्रे ने बताया कि युद्ध में सिखों की प्रशंसा करने वाले कमांडिंग अफसरों के कई पत्र हैं। उन्होंने बताया कि सिख जो पगड़ी पहनते हैं उसमें कई परत होती है जो उन्हें प्रभावी सुरक्षा प्रदान करती है।
दूसरे विश्व युद्ध में पंजाब रेजीमेंट की कमान संभालने वाले कर्नल ह्यूजेस ऐसे ही एक पत्र में लिखते हैं कि सिख सैनिकों ने युद्ध में पगड़ी पहन रखी थी। हालांकि इसके बावजूद स्टील के हेलमेट पहनने वाली किसी भी अन्य बटालियन की तुलना में उनके सिर में कम चोटें लगीं।
अमेरिका के मरीन कॉर्प्स में भी पगड़ी पहनने की छूट
अमेरिका की एक कोर्ट ने दिसंबर 2022 में कहा था कि पगड़ी पहनने और दाढ़ी रखने की वजह से सिखों को मरीन कॉर्प्स में भर्ती होने से नहीं रोका जा सकता। कोर्ट ने 3 सिख युवकों की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही थी। दरअसल, मरीन कॉर्प्स में जवानों को दाढ़ी करने की अनुमति नहीं होती है। यूएस की कोर्ट ऑफ अपील ने बाल काटने और दाढ़ी मुंडवाने के नियम को धार्मिक स्वतंत्रता बहाली अधिनियम का उल्लंघन बताया।
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