28 February 2024 09:19 AM
देशभर के सरकारी-प्राइवेट अस्पतालों और केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने आड़े हाथों लेते हुए कड़ी चेतावनी दी है। सुप्रीम कोर्ट ने मोतियाबिंद सर्जरी के रेटों के लेकर सख्त रूख अपनाया है।
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि केंद्र सरकार या तो तय किए गए मानकों के अनुसार मरीजों से पैसा वसूले, नहीं तो मजबूरन CGHS दरों को बढ़ाना पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने मोतियाबिंद सर्जरी और इसके रेटों को लेकर बनाए गए नियमों का पालन नहीं करने पर केंद्र सरकार की आलोचना की ओर सेंट्रल गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (CGHS) की दरों को बढ़ाने की चेतावनी दी है।
14 साल पुराने कानून का जिक्र करके आपत्ति जताई
सुप्रीम कोर्ट ने वकील दानिश जुबैर खान के जरिए दायर की गई याचिका पर सुनवाई की। याचिका NGO 'वेटरन्स फोरम फॉर ट्रांसपेरेंसी इन पब्लिक लाइफ' की ओर से दायर की गई थी। याचिका में क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट (केंद्र सरकार) नियम 2012 के नियम-9 के तहत मोतियाबिंद सर्जरी कराने के लिए मरीजों से ली जाने वाली फीस की दरें तय करने और तय दरों को लागू कराने के निर्देश केंद्र सरकार को देने की मांग की गई थी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 14 साल पुराने कानून क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट के नियमों को लागू करने में असमानता और असमर्थता पर कड़ी आपत्ति जताई।
सुनवाई करने वाली पीठ ने सर्जरी का खर्चा भी बताया
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून के अनुसार, राज्यों में बीमारियों के उपचार और प्रक्रियाओं के लिए वसूली जाने वाली फीस को राज्यों के परामर्श से तय करने का प्रावधान है। साथ ही शहरों-कस्बों के साथ-साथ शहरों में बने सरकारी अस्पतालों में बोर्ड पर रेट चार्ट लगाने की भी व्यवस्था है। मोतियाबिंद सर्जरी करने का खर्च सरकारी अस्पताल में प्रति आंख 10 हजार रुपये और निजी अस्पताल में 30 से 1.40 लाख रुपये तक हो सकती है। याचिका पर सुनवाई करते हुए कई बार राज्य सरकारों से जवाब मांगा गया, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। केंद्र सरकार भी कानून को राज्यों में एक समान तरीके से लागू नहीं करवा पाई।
राज्यों की बैठक बुलाकर नियम लागू कराने के निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश के नागरिकों को स्वास्थ्य सेवा का मौलिक अधिकार प्राप्त है। केंद्र सरकार इस अधिकार को देने से जुड़ी अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव एक महीने के अंदर बीमारियों के इलाज की फीस दरें तय करना सुनिश्चित करने के लिए राज्यों की बैठक बुलाकर समाधान निकालें। अगर केंद्र सरकार कोई समाधान ढूंढने में विफल रहती है तो हम CGHS की कानून के अनुसार नई दरों तय करने के लिए याचिकाकर्ता की मांग पर विचार करेंगे। वहीं अगर राज्य समान अस्पताल शुल्क तय नहीं करते हैं तो केंद्र सरकार केंद्रीय कानूनों का उपयोग करके कार्रवाई करे।
याचिका पर सुनवाई न्यायमूर्ति BR गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने की।
देशभर के सरकारी-प्राइवेट अस्पतालों और केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने आड़े हाथों लेते हुए कड़ी चेतावनी दी है। सुप्रीम कोर्ट ने मोतियाबिंद सर्जरी के रेटों के लेकर सख्त रूख अपनाया है।
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि केंद्र सरकार या तो तय किए गए मानकों के अनुसार मरीजों से पैसा वसूले, नहीं तो मजबूरन CGHS दरों को बढ़ाना पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने मोतियाबिंद सर्जरी और इसके रेटों को लेकर बनाए गए नियमों का पालन नहीं करने पर केंद्र सरकार की आलोचना की ओर सेंट्रल गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (CGHS) की दरों को बढ़ाने की चेतावनी दी है।
14 साल पुराने कानून का जिक्र करके आपत्ति जताई
सुप्रीम कोर्ट ने वकील दानिश जुबैर खान के जरिए दायर की गई याचिका पर सुनवाई की। याचिका NGO 'वेटरन्स फोरम फॉर ट्रांसपेरेंसी इन पब्लिक लाइफ' की ओर से दायर की गई थी। याचिका में क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट (केंद्र सरकार) नियम 2012 के नियम-9 के तहत मोतियाबिंद सर्जरी कराने के लिए मरीजों से ली जाने वाली फीस की दरें तय करने और तय दरों को लागू कराने के निर्देश केंद्र सरकार को देने की मांग की गई थी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 14 साल पुराने कानून क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट के नियमों को लागू करने में असमानता और असमर्थता पर कड़ी आपत्ति जताई।
सुनवाई करने वाली पीठ ने सर्जरी का खर्चा भी बताया
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून के अनुसार, राज्यों में बीमारियों के उपचार और प्रक्रियाओं के लिए वसूली जाने वाली फीस को राज्यों के परामर्श से तय करने का प्रावधान है। साथ ही शहरों-कस्बों के साथ-साथ शहरों में बने सरकारी अस्पतालों में बोर्ड पर रेट चार्ट लगाने की भी व्यवस्था है। मोतियाबिंद सर्जरी करने का खर्च सरकारी अस्पताल में प्रति आंख 10 हजार रुपये और निजी अस्पताल में 30 से 1.40 लाख रुपये तक हो सकती है। याचिका पर सुनवाई करते हुए कई बार राज्य सरकारों से जवाब मांगा गया, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। केंद्र सरकार भी कानून को राज्यों में एक समान तरीके से लागू नहीं करवा पाई।
राज्यों की बैठक बुलाकर नियम लागू कराने के निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश के नागरिकों को स्वास्थ्य सेवा का मौलिक अधिकार प्राप्त है। केंद्र सरकार इस अधिकार को देने से जुड़ी अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव एक महीने के अंदर बीमारियों के इलाज की फीस दरें तय करना सुनिश्चित करने के लिए राज्यों की बैठक बुलाकर समाधान निकालें। अगर केंद्र सरकार कोई समाधान ढूंढने में विफल रहती है तो हम CGHS की कानून के अनुसार नई दरों तय करने के लिए याचिकाकर्ता की मांग पर विचार करेंगे। वहीं अगर राज्य समान अस्पताल शुल्क तय नहीं करते हैं तो केंद्र सरकार केंद्रीय कानूनों का उपयोग करके कार्रवाई करे।
याचिका पर सुनवाई न्यायमूर्ति BR गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने की।
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25 August 2021 08:44 AM
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