20 May 2021 04:06 PM
जोग संजोग टाइम्स
यह बात शायद कमजोर से कमजोर तबके व ठेठ गांवों में बैठें लोगों को भी पता है कि हेलमेट लगाने से कोरोना भागने वाला नहीं है। किंतु यह बात सरकार व सरकार के नुमाइंदों को कौन समझाएं। कोरोना संक्रमण काल में पहले से ही मंदी की मार झेल रहे निम्न व मध्यम वर्ग के लोगों से हेलमेट नहीं लगाने के नाम पर पुलिस महकमा जमकर राजस्व वसूल करने में जुटा हैं। हालांकि चालान करने व काटने वाले पुलिस अधिकारी भी दबी आवाज में स्वीकार कर रहे हैं कि इस कोरोना संक्रमण काल में पहले से ही लोग मंदी के दौर से गुजर रहे हैं। ऐसे में उन पर हेलमेट के नाम पर जुर्माना वसूलना मुनासिब नहीं है। इसी के साथ वे ये भी कह रहे है कि उनको ऊपर से टारगेट मिला है और सख्ती के चलते वे भी कुछ नहीं कर सकते। किंतु इतना जरूर है कि हेलमेट नहीं पहनने पर सरकार की ओर से एक हजार रुपए का जुर्माना है। उसकी एवज में पुलिस महज 100 रुपए वसूल रही हैं।
सरकार ने लॉकडाउन तो लगाया, किंतु घर से बाहर आवश्यक काम से निकलने वाले लोगों पर हेलमेट रूपी नकेल डाल दी है। ताकि लोग घरों से कम से कम बाहर निकले। आवश्यक हो तो ही बाहर निकले। किंतु इसमें हेलमेट की बात अभी भी समझ से परे की बात हैं। लगता है कि पुलिस को भी हेलमेट कौनसे क्षेत्र में लगाने हैं की सीखने की जरूरत हैं।
सवालियां निशां
हेलमेट लगाने के लिए पुलिस भीड़भाड़ वाले शहर में रहने वालों को परेशान कर रही हैं, किंतु कभी आपने सुना है कि केईएम रोड पर सडक़ हादसा हो गया और उसमें किसी की जान चली गई। शायद नहीं, किंतु यह बात सरकार, पुलिस व प्रशासन को कौन समझाए। वह तो पूरी ईमानदारी के साथ उसी क्षेत्र में हेलमेट नहीं लगाने के नाम पर लोगों को परेशान व पैसा वसूल कर रही हैं। जहां एक ओर तो पहले से ही भीड़भाड़ है तथा दूसरी ओर वाहनों की गति भी नहीं के बराबर है। जबकि गंभीर सडक़ हादसे तो खुली सडक़ या मार्ग पर होते हैं। जहां वाहन की गति पर किसी प्रकार का कोई नियंत्रण नहीं रह जाता। किंतु आज तक किसी भी पुलिसकर्मी को हाइवे पर वाहनों के चालान करते हुए नहीं देखा गया है। वहां तक पुलिस पहुंचती भी नहीं हैं यदि पहुंचती भी है तो खानापूर्ति के नाम पर अपने कार्य के प्रति इतिश्री कर रही हैं।
यदि इतनी ही ईमानदार होती तो आज यह नौबत नहीं आती
पुलिस भी यदि अपने कार्य के प्रति इतनी ईमानदार व जिम्मेदार होती तो शायद आज जैसी नौबत नहीं आती। हेलमेट अभियान को पुलिस व सरकार ने सिर्फ और सिर्फ राजस्व वसूली से जोड़ते हुए अभी तक काम किया है। इसका लेकर सभी पुलिस थाने टारगेट के आधार पर खानापूर्ति कर रहे थे। किंतु अचानक कोरोना संक्रमण काल में पुलिस पर ऐसी क्या आफत आन पड़ी कि अपने कार्य के प्रति जिम्मेदार मानी जाने वाली पुलिस इतनी सख्त व कठोर हो गई कि उसको गरीब की मजबूरी व विवशता भी नजर नहीं आ रही हैं। यदि पुलिस व सरकार ने हेलमेट अभियान को यदि गंभीरता से लिया होता तो आज सभी हेलमेट पहनने े अभ्यस्त से हो गए होते। किंतु ऐसा कभी नहीं हुआ। पुलिस पहले भी अपने चहेतों को ऐसे ही छोड़ रही और अब भी अपने चहेतों को बख्श रही हैं। मार तो सिर्फ और सिर्फ निम्र व मध्यम वर्ग के लोगों पर पड़ रही है। रसूखवाले, धनाढ्य या जन प्रतिनिधियों पर पुलिस हाथ डालते हुए ही धबराती है।
जोग संजोग टाइम्स
यह बात शायद कमजोर से कमजोर तबके व ठेठ गांवों में बैठें लोगों को भी पता है कि हेलमेट लगाने से कोरोना भागने वाला नहीं है। किंतु यह बात सरकार व सरकार के नुमाइंदों को कौन समझाएं। कोरोना संक्रमण काल में पहले से ही मंदी की मार झेल रहे निम्न व मध्यम वर्ग के लोगों से हेलमेट नहीं लगाने के नाम पर पुलिस महकमा जमकर राजस्व वसूल करने में जुटा हैं। हालांकि चालान करने व काटने वाले पुलिस अधिकारी भी दबी आवाज में स्वीकार कर रहे हैं कि इस कोरोना संक्रमण काल में पहले से ही लोग मंदी के दौर से गुजर रहे हैं। ऐसे में उन पर हेलमेट के नाम पर जुर्माना वसूलना मुनासिब नहीं है। इसी के साथ वे ये भी कह रहे है कि उनको ऊपर से टारगेट मिला है और सख्ती के चलते वे भी कुछ नहीं कर सकते। किंतु इतना जरूर है कि हेलमेट नहीं पहनने पर सरकार की ओर से एक हजार रुपए का जुर्माना है। उसकी एवज में पुलिस महज 100 रुपए वसूल रही हैं।
सरकार ने लॉकडाउन तो लगाया, किंतु घर से बाहर आवश्यक काम से निकलने वाले लोगों पर हेलमेट रूपी नकेल डाल दी है। ताकि लोग घरों से कम से कम बाहर निकले। आवश्यक हो तो ही बाहर निकले। किंतु इसमें हेलमेट की बात अभी भी समझ से परे की बात हैं। लगता है कि पुलिस को भी हेलमेट कौनसे क्षेत्र में लगाने हैं की सीखने की जरूरत हैं।
सवालियां निशां
हेलमेट लगाने के लिए पुलिस भीड़भाड़ वाले शहर में रहने वालों को परेशान कर रही हैं, किंतु कभी आपने सुना है कि केईएम रोड पर सडक़ हादसा हो गया और उसमें किसी की जान चली गई। शायद नहीं, किंतु यह बात सरकार, पुलिस व प्रशासन को कौन समझाए। वह तो पूरी ईमानदारी के साथ उसी क्षेत्र में हेलमेट नहीं लगाने के नाम पर लोगों को परेशान व पैसा वसूल कर रही हैं। जहां एक ओर तो पहले से ही भीड़भाड़ है तथा दूसरी ओर वाहनों की गति भी नहीं के बराबर है। जबकि गंभीर सडक़ हादसे तो खुली सडक़ या मार्ग पर होते हैं। जहां वाहन की गति पर किसी प्रकार का कोई नियंत्रण नहीं रह जाता। किंतु आज तक किसी भी पुलिसकर्मी को हाइवे पर वाहनों के चालान करते हुए नहीं देखा गया है। वहां तक पुलिस पहुंचती भी नहीं हैं यदि पहुंचती भी है तो खानापूर्ति के नाम पर अपने कार्य के प्रति इतिश्री कर रही हैं।
यदि इतनी ही ईमानदार होती तो आज यह नौबत नहीं आती
पुलिस भी यदि अपने कार्य के प्रति इतनी ईमानदार व जिम्मेदार होती तो शायद आज जैसी नौबत नहीं आती। हेलमेट अभियान को पुलिस व सरकार ने सिर्फ और सिर्फ राजस्व वसूली से जोड़ते हुए अभी तक काम किया है। इसका लेकर सभी पुलिस थाने टारगेट के आधार पर खानापूर्ति कर रहे थे। किंतु अचानक कोरोना संक्रमण काल में पुलिस पर ऐसी क्या आफत आन पड़ी कि अपने कार्य के प्रति जिम्मेदार मानी जाने वाली पुलिस इतनी सख्त व कठोर हो गई कि उसको गरीब की मजबूरी व विवशता भी नजर नहीं आ रही हैं। यदि पुलिस व सरकार ने हेलमेट अभियान को यदि गंभीरता से लिया होता तो आज सभी हेलमेट पहनने े अभ्यस्त से हो गए होते। किंतु ऐसा कभी नहीं हुआ। पुलिस पहले भी अपने चहेतों को ऐसे ही छोड़ रही और अब भी अपने चहेतों को बख्श रही हैं। मार तो सिर्फ और सिर्फ निम्र व मध्यम वर्ग के लोगों पर पड़ रही है। रसूखवाले, धनाढ्य या जन प्रतिनिधियों पर पुलिस हाथ डालते हुए ही धबराती है।
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