17 March 2022 03:00 PM
जोग संजोग टाइम्स ,बीकानेर
बीकानेर दुखद समाचार: जैन तेरापन्थ धर्मसंघ के साध्वी समुदाय की मुख्या शासनमाता साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा ने दिल्ली में ली अन्तिम सांस, मुख्यमंत्री गहलोत सहित दिग्गजों ने दीं श्रद्धांजलि…..
साध्वी प्रमुखा कनकप्रभाजी का महाप्रयाण:तीन आचार्यों के साथ समाज सुधार कार्यों में जीवन लगा दिया था कनकप्रभाजी ने, आज अंतिम समय में आचार्य महाश्रमण रहे साथ
जैन तेरापन्थ धर्मसंघ के साध्वी समुदाय की मुख्या शासनमाता साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा का दिल्ली में गुरुवार सुबह 8 बजकर 45 मिनट पर महाप्रयाण हो गया है। इसके बाद से बीकनेर सहित पूरे देश में जैन समाज में शोक की लहर है। साध्वीप्रमुखा कुछ दिनों से अस्वस्थ चल रही थी। दिल्ली के एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था।
महाश्रमण अंत तक रहे साथ
जैन समाज के आचार्य महाश्रमण साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा का बहुत सम्मान करते थे। उनकी बीमारी और गंभीर स्थिति का पता चलने के बाद वो स्वयं पदयात्रा करते हुए दिल्ली रवाना हो गए। तेरापन्थ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने उनसे मिलने के लिए लंबी पदयात्रा की। अंतिम समय तक आचार्य महाश्रमण उनके साथ थे।
साध्वीप्रमुखा के स्वास्थ्य को प्रतिदिन गिरता देखकर उन्होंने संथारे की भावना व्यक्त की। आचार्य ने साध्वीप्रमुखा को गुरुवार सुबह 7बजकर 15 मिनट पर तेरापन्थ भवन परिसर अध्यात्म साधना केंद्र में संथारे का प्रत्याख्यान करवाया था। लगभग 1:30 घण्टे बाद संथारा सीज गया। तेरापन्थ धर्मसंघ सहित पूरे जैन और देशभर में साध्वीप्रमुखा के महाप्रयाण की खबर से शोक की लहर दौड़ पड़ी है।
बीकानेर में मिली साध्वी प्रमुखा उपाधि
आचार्य तुलसी ने बीकानेर में ही आयोजित एक कार्यक्रम में साध्वी कनकप्रभा को साध्वी प्रमुखा की उपाधि दी थी। वो तीन आचार्यों आचार्य तुलसी, आचार्य महाप्रज्ञ और आचार्य महाश्रमण के साथ रहीं। जैन समाज के पुखराज चौपड़ा ने बताया कि बीकानेर में, खासकर गंगाशहर में उनका प्रवास रहा। मर्यादा महोत्सव के दौरान भी साध्वी प्रमुखा बीकानेर में रही।
गुलाम भारत में लिया था जन्म
साध्वीप्रमुख कनकप्रभा का जन्म 22 जुलाई 1941 को कलकत्ता, बंगाल, ब्रिटिश भारत में हुआ था। उन्होंने 15 साल की उम्र में पारमार्थिक शिक्षण संस्थान, लाडनूं (एक संस्था जहां प्रशिक्षण दिया जाता है) में भाग लिया। 19 साल की उम्र में लाडनूं में अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद एक तपस्वी का एहसास हुआ। उन्हें तेरापंथ के 9वें प्रमुख आचार्य तुलसी ने 8 जुलाई 1960 को दीक्षा दी थी ।
जोग संजोग टाइम्स ,बीकानेर
बीकानेर दुखद समाचार: जैन तेरापन्थ धर्मसंघ के साध्वी समुदाय की मुख्या शासनमाता साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा ने दिल्ली में ली अन्तिम सांस, मुख्यमंत्री गहलोत सहित दिग्गजों ने दीं श्रद्धांजलि…..
साध्वी प्रमुखा कनकप्रभाजी का महाप्रयाण:तीन आचार्यों के साथ समाज सुधार कार्यों में जीवन लगा दिया था कनकप्रभाजी ने, आज अंतिम समय में आचार्य महाश्रमण रहे साथ
जैन तेरापन्थ धर्मसंघ के साध्वी समुदाय की मुख्या शासनमाता साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा का दिल्ली में गुरुवार सुबह 8 बजकर 45 मिनट पर महाप्रयाण हो गया है। इसके बाद से बीकनेर सहित पूरे देश में जैन समाज में शोक की लहर है। साध्वीप्रमुखा कुछ दिनों से अस्वस्थ चल रही थी। दिल्ली के एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था।
महाश्रमण अंत तक रहे साथ
जैन समाज के आचार्य महाश्रमण साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा का बहुत सम्मान करते थे। उनकी बीमारी और गंभीर स्थिति का पता चलने के बाद वो स्वयं पदयात्रा करते हुए दिल्ली रवाना हो गए। तेरापन्थ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने उनसे मिलने के लिए लंबी पदयात्रा की। अंतिम समय तक आचार्य महाश्रमण उनके साथ थे।
साध्वीप्रमुखा के स्वास्थ्य को प्रतिदिन गिरता देखकर उन्होंने संथारे की भावना व्यक्त की। आचार्य ने साध्वीप्रमुखा को गुरुवार सुबह 7बजकर 15 मिनट पर तेरापन्थ भवन परिसर अध्यात्म साधना केंद्र में संथारे का प्रत्याख्यान करवाया था। लगभग 1:30 घण्टे बाद संथारा सीज गया। तेरापन्थ धर्मसंघ सहित पूरे जैन और देशभर में साध्वीप्रमुखा के महाप्रयाण की खबर से शोक की लहर दौड़ पड़ी है।
बीकानेर में मिली साध्वी प्रमुखा उपाधि
आचार्य तुलसी ने बीकानेर में ही आयोजित एक कार्यक्रम में साध्वी कनकप्रभा को साध्वी प्रमुखा की उपाधि दी थी। वो तीन आचार्यों आचार्य तुलसी, आचार्य महाप्रज्ञ और आचार्य महाश्रमण के साथ रहीं। जैन समाज के पुखराज चौपड़ा ने बताया कि बीकानेर में, खासकर गंगाशहर में उनका प्रवास रहा। मर्यादा महोत्सव के दौरान भी साध्वी प्रमुखा बीकानेर में रही।
गुलाम भारत में लिया था जन्म
साध्वीप्रमुख कनकप्रभा का जन्म 22 जुलाई 1941 को कलकत्ता, बंगाल, ब्रिटिश भारत में हुआ था। उन्होंने 15 साल की उम्र में पारमार्थिक शिक्षण संस्थान, लाडनूं (एक संस्था जहां प्रशिक्षण दिया जाता है) में भाग लिया। 19 साल की उम्र में लाडनूं में अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद एक तपस्वी का एहसास हुआ। उन्हें तेरापंथ के 9वें प्रमुख आचार्य तुलसी ने 8 जुलाई 1960 को दीक्षा दी थी ।
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