28 May 2022 04:07 PM
जोग संजोग टाइम्स,
जिस उम्र में हाथों से सुनहरे भविष्य की चाह में अलग-अलग रंग जीवन में भरे जाते हैं, सपनों की उड़ान भरी जाती है, उन हाथों के बिना जीवन कैसा होगा? इसकी केवल कल्पना से ही मन सिहर उठता है। ऐसा ही कुछ हुआ बाड़मेर की लीला के साथ, लेकिन आठ साल पहले हादसे में हाथ गंवाने के बाद भी लीला ने जीवन से हार नहीं मानी। इस साल 12वीं का एग्जाम देने वाली लीला ने पैरों को हाथों की जगह दी और चुनौतियों काे हर कदम हराते हुए तेजी से आगे बढ़ने लगी।
बेटी को मेहनत करता देख परिवार ने भी उसके भविष्य को नए सिरे से संवारने के लिए प्रयास शुरू कर दिए। अपनी जमा पूंजी प्राइवेट बैंक में रखनी शुरू कर दी। जिससे बेटी अपने सपने पूरी कर सके, लेकिन वो भी बैंक लूट कर ले गई। अब लोगों से कर्ज लेकर परिवार बेटी को पढ़ा रहा है।
हाल ही में लीला चर्चा में आई जब उसने चीफ जस्टिस को लेटर लिखकर बैंक से अपने पैसे वापस दिलाने की मांग की है। जब लीला के बारे में बात करने भास्कर उनके घर पहुंचा तो परिवार भावुक होकर रोने लगा। लीला का सपना था कि मैं बड़ी होकर सेना या पुलिस में ऑफिसर बनूं, लेकिन वो सपना टूट गया। लीला कहती है- आज भी मैं बहुत कुछ बनाना चाहती हूं, लेकिन जमा पूंजी प्राइवेट बैंक लूट कर ले गई।
दरअसल, बाड़मेर जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर हापो की ढाणी निवासी लीला कंवर जब चौथी क्लास में पढ़ती थी, तब खेलते-खेलते खुले तारों को हाथ में पकड़ लिया। करंट लगने से बेहोश होकर गिर गई। परिवार के लोग अस्पताल ले गए, वहां से जोधपुर फिर अहमदाबाद में इलाज करवाया। डॉक्टर की सलाह पर दोनों हाथ कटवाने पड़े।
पैर से लिखने के बाद भी लीला की राइटिंग बहुत सुंदर है।
वकील बनना चाहती है
लीला कंवर का कहना है कि मैं अपने खुद के पैरों पर खड़ा होना चाहती हूं, मेरे मां-बाप पर बोझ नहीं बनना चाहती। मैं पढ़-लिखकर वकील बनना चाहती हूं। हाल ही में लीला ने हाईकोर्ट के जस्टिस को लेटर लिखा है कि सरकार मदद नहीं करना चाहती है तो न करे। बस हमारे हक का पैसा प्राइवेट बैंक से दिलवा दें।
आज भी हादसे के बारे में सोचकर परिवार के हर सदस्य की आंखें नम हो जाती हैं।
ऐसे सीखा लिखना
लीला ने बताया कि हाथ नहीं होने की वजह से घर में वह अकेली बैठी रहती थी। खेलने, पढ़ने और लिखने का मन भी होता था। हादसे के डेढ साल बाद अकेले बैठी-बैठी मन में आया कि पैर से लिखना शुरू करती हूं। पापा से बोलकर पांच रुपए की कॉपी व दो रुपए का पेन लेकर लिखना शुरू किया। कई महीनों के प्रयास के बाद धीरे-धीरे लिखना शुरू कर दिया।
लीला कंवर बताती है कि जब पैर से लिखना शुरू कर दिया तो गांव के डॉक्टर ने मुझे व मेरे परिवार से कहा कि लिखना सीख गई तो उसको स्कूल भेजो। फिर लीला ने गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ना, लिखना सीखा। पिता भूरसिंह ने प्राइवेट स्कूल में रिक्वेस्ट करके मेरा एडमिशन करवा दिया। अब मैंने 12 वी क्लास की परीक्षा दी है। रिजल्ट आया नहीं है।
हाथ नहीं होने के बाद भी लीला सामान्य लोगों की तरह सभी काम करती हैं।
राइटिंग ऐसी कि अच्छे-अच्छे को छोड़ दे पीछे
शुरूआत में जब पैर से लिखना शुरू किया तो तीन-चार लाइन में शब्द लिखे जाते थे। जैसे-जैसे प्रैक्टिस की वैसे-वैसे शब्द सुंदर होने लगे। अब लीला की राइटिंग ऐसी है कि कोई यह कह नहीं सकता कि यह पैर से लिखा हुआ है।
लीला का सपना है कि वह वकील बने। कई महीनों की प्रैक्टिस के बाद उसने पैर से इस तरह लिखना सीखा है।
माता-पिता को भविष्य की चिंता
लीला के पिता भूरसिंह व मां मोर कंवर दोनों को लीला के भविष्य की चिंता है। लाखों रुपए खर्च करके इलाज करवा दिए जो जमा पूंजी थी, वह प्राइवेट बैंक ले डूबी। बुढ़ापे में पिता भी कमा नहीं सकते हैं। भाई छोटा-मोटा काम करके घर का जैसे-तैसे गुजारा चला रहे हैं। मां मोरकंवर कहना है कि बेटी पराया धन होती है, लेकिन बिना हाथ के भविष्य को लेकर चिंता होती है। अब यह पढ़-लिखकर कुछ बन जाए तो इसका आगे का जीवन ढंग से गुजर जाए।
पिता भूरसिंह की आंखों में आज भी दर्द साफ दिखाई देता है।
लीला के पिता किसान, प्राइवेट बैंक ने लालच देकर करवाए जमा
लीला बताती है कि मेरे पिता किसान थे। हादसे के बाद पिता मुझे जोधपुर, अहमदाबाद लेकर गए। वहां पर इलाज करवाया। उस समय घर में कमाने वाला भी कोई नहीं था। जैसे-तैसे करके पिता ने मेरा इलाज करवाया। बिजली विभाग से साढे़ चार लाख रुपए की मदद मिली। पापा ने इलाहबाद बैंक में जमा करवा दिए। साल 2017 में गांव के एजेंट ने लालच दिया कि प्राइवेट बैंक में पांच लाख रुपए से ज्यादा जमा करवाने पर 7 सालों में दोगुने हो जाएंगे। पिता ने साढ़े चार लाख व पचास हजार रुपए इधर-उधर से लाकर जमा करवा दिए। अब वह बैंक भी उठ गई और हमारे हक का पैसा भी लूट ले गई।
जोग संजोग टाइम्स,
जिस उम्र में हाथों से सुनहरे भविष्य की चाह में अलग-अलग रंग जीवन में भरे जाते हैं, सपनों की उड़ान भरी जाती है, उन हाथों के बिना जीवन कैसा होगा? इसकी केवल कल्पना से ही मन सिहर उठता है। ऐसा ही कुछ हुआ बाड़मेर की लीला के साथ, लेकिन आठ साल पहले हादसे में हाथ गंवाने के बाद भी लीला ने जीवन से हार नहीं मानी। इस साल 12वीं का एग्जाम देने वाली लीला ने पैरों को हाथों की जगह दी और चुनौतियों काे हर कदम हराते हुए तेजी से आगे बढ़ने लगी।
बेटी को मेहनत करता देख परिवार ने भी उसके भविष्य को नए सिरे से संवारने के लिए प्रयास शुरू कर दिए। अपनी जमा पूंजी प्राइवेट बैंक में रखनी शुरू कर दी। जिससे बेटी अपने सपने पूरी कर सके, लेकिन वो भी बैंक लूट कर ले गई। अब लोगों से कर्ज लेकर परिवार बेटी को पढ़ा रहा है।
हाल ही में लीला चर्चा में आई जब उसने चीफ जस्टिस को लेटर लिखकर बैंक से अपने पैसे वापस दिलाने की मांग की है। जब लीला के बारे में बात करने भास्कर उनके घर पहुंचा तो परिवार भावुक होकर रोने लगा। लीला का सपना था कि मैं बड़ी होकर सेना या पुलिस में ऑफिसर बनूं, लेकिन वो सपना टूट गया। लीला कहती है- आज भी मैं बहुत कुछ बनाना चाहती हूं, लेकिन जमा पूंजी प्राइवेट बैंक लूट कर ले गई।
दरअसल, बाड़मेर जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर हापो की ढाणी निवासी लीला कंवर जब चौथी क्लास में पढ़ती थी, तब खेलते-खेलते खुले तारों को हाथ में पकड़ लिया। करंट लगने से बेहोश होकर गिर गई। परिवार के लोग अस्पताल ले गए, वहां से जोधपुर फिर अहमदाबाद में इलाज करवाया। डॉक्टर की सलाह पर दोनों हाथ कटवाने पड़े।
पैर से लिखने के बाद भी लीला की राइटिंग बहुत सुंदर है।
वकील बनना चाहती है
लीला कंवर का कहना है कि मैं अपने खुद के पैरों पर खड़ा होना चाहती हूं, मेरे मां-बाप पर बोझ नहीं बनना चाहती। मैं पढ़-लिखकर वकील बनना चाहती हूं। हाल ही में लीला ने हाईकोर्ट के जस्टिस को लेटर लिखा है कि सरकार मदद नहीं करना चाहती है तो न करे। बस हमारे हक का पैसा प्राइवेट बैंक से दिलवा दें।
आज भी हादसे के बारे में सोचकर परिवार के हर सदस्य की आंखें नम हो जाती हैं।
ऐसे सीखा लिखना
लीला ने बताया कि हाथ नहीं होने की वजह से घर में वह अकेली बैठी रहती थी। खेलने, पढ़ने और लिखने का मन भी होता था। हादसे के डेढ साल बाद अकेले बैठी-बैठी मन में आया कि पैर से लिखना शुरू करती हूं। पापा से बोलकर पांच रुपए की कॉपी व दो रुपए का पेन लेकर लिखना शुरू किया। कई महीनों के प्रयास के बाद धीरे-धीरे लिखना शुरू कर दिया।
लीला कंवर बताती है कि जब पैर से लिखना शुरू कर दिया तो गांव के डॉक्टर ने मुझे व मेरे परिवार से कहा कि लिखना सीख गई तो उसको स्कूल भेजो। फिर लीला ने गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ना, लिखना सीखा। पिता भूरसिंह ने प्राइवेट स्कूल में रिक्वेस्ट करके मेरा एडमिशन करवा दिया। अब मैंने 12 वी क्लास की परीक्षा दी है। रिजल्ट आया नहीं है।
हाथ नहीं होने के बाद भी लीला सामान्य लोगों की तरह सभी काम करती हैं।
राइटिंग ऐसी कि अच्छे-अच्छे को छोड़ दे पीछे
शुरूआत में जब पैर से लिखना शुरू किया तो तीन-चार लाइन में शब्द लिखे जाते थे। जैसे-जैसे प्रैक्टिस की वैसे-वैसे शब्द सुंदर होने लगे। अब लीला की राइटिंग ऐसी है कि कोई यह कह नहीं सकता कि यह पैर से लिखा हुआ है।
लीला का सपना है कि वह वकील बने। कई महीनों की प्रैक्टिस के बाद उसने पैर से इस तरह लिखना सीखा है।
माता-पिता को भविष्य की चिंता
लीला के पिता भूरसिंह व मां मोर कंवर दोनों को लीला के भविष्य की चिंता है। लाखों रुपए खर्च करके इलाज करवा दिए जो जमा पूंजी थी, वह प्राइवेट बैंक ले डूबी। बुढ़ापे में पिता भी कमा नहीं सकते हैं। भाई छोटा-मोटा काम करके घर का जैसे-तैसे गुजारा चला रहे हैं। मां मोरकंवर कहना है कि बेटी पराया धन होती है, लेकिन बिना हाथ के भविष्य को लेकर चिंता होती है। अब यह पढ़-लिखकर कुछ बन जाए तो इसका आगे का जीवन ढंग से गुजर जाए।
पिता भूरसिंह की आंखों में आज भी दर्द साफ दिखाई देता है।
लीला के पिता किसान, प्राइवेट बैंक ने लालच देकर करवाए जमा
लीला बताती है कि मेरे पिता किसान थे। हादसे के बाद पिता मुझे जोधपुर, अहमदाबाद लेकर गए। वहां पर इलाज करवाया। उस समय घर में कमाने वाला भी कोई नहीं था। जैसे-तैसे करके पिता ने मेरा इलाज करवाया। बिजली विभाग से साढे़ चार लाख रुपए की मदद मिली। पापा ने इलाहबाद बैंक में जमा करवा दिए। साल 2017 में गांव के एजेंट ने लालच दिया कि प्राइवेट बैंक में पांच लाख रुपए से ज्यादा जमा करवाने पर 7 सालों में दोगुने हो जाएंगे। पिता ने साढ़े चार लाख व पचास हजार रुपए इधर-उधर से लाकर जमा करवा दिए। अब वह बैंक भी उठ गई और हमारे हक का पैसा भी लूट ले गई।
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